विजयराजी९९

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लॉक को कोड में बदल दिया!

The Man Who Turned Luck Into Code: A Nordic-Egyptian Mahjong Odyssey

ये महजंग सिर्फ खेल नहीं… ये तो पूजा है! जब तुम्हारे हाथ में टाइल्स हैं, तो किसी का संकटा नहीं… कर्मा की साँस है। मुझे पता है — ‘अपनी किस्मत’ सिर्फ पैसे से नहीं… ‘अपने पुराने’ से मिलती है। अब सवाल: ‘आज तुमने किस देवता को मिलाया?’ — comment karo yaar!

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2025-10-18 03:01:45
जब बैन हुआ, तो मैंने 1200 शब्द लिखे!

The night I was banned, I wrote 1200 words of quiet confession — not for luck, but for healing

ये कहानी सच्चाई है: मैंने जीता नहीं किया… मैंने सांस्क्रित कोड को पढ़ा! “फ्री रोटेशन”? हाँ! वो तो मुझे समय-लगाना है। पहले मुझे लकी मिलती? नहीं — मुझे पुजा मिली! कर्मा का पहिया है। 🎲 अगर आपको पता है कि “जब मुझे स्टेक्स” पर “कर्म” सवार होता है… तो कमेंट में बताएँ — “आपको किस देवता का प्रशस्ति मिला?”

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2025-10-29 20:08:00
3 बजे महजों क्यों खेलते हैं?

Why Do the Calmest Players Keep Playing Mahjong at 3 a.m.?

3 बजे भी महजों खेलने वाले ये लोग सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए नहीं… बल्कि ‘कर्मा की प्रतीक्षा’ में फंस गए हैं! 🃣 कल्पट्रॉन (Karma-tile) मिलता है… 14वां पत्थर? सिर्फ़ ‘अपनी सुनहरी सुबह’ का प्रतीक है। आज कलेक्टिविज़्म (collectivism) का मतलब: ‘खेलोगा’, पर ‘जीत’ (win) कभी माँगा। अगर तुम हमारा ‘फ्री-रोटेशन’ पाओ… सचमुच! 😌 अब बताओ — कौन सचमुच ‘देव-डाइस’ (Deva-dice) से हथिया? 🎲

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2025-11-11 09:36:09
जब नौकर से गोल्डन ड्रैगन तक!

From Novice to Golden Dragon: How I Turned Mahjong into a Life of Luck, Logic, and Legacy

मुझे कभी पैसा जीतने का मन नहीं था… पर एक दिन महजांग के टाइल्स की आवाज़ सुनकर मैं हिमालय के मंदिर से पार हो गया। क्या मुझे सौभाग्य मिला? नहीं! मेरी ‘कर्म’ की हथेलियाँ। हर हाथ सिर्फ़ ‘पूजा’ है—नहीं ‘जुएट’। पढ़ो: ‘मेरी किस्मत सच्ची है…और मुझसे पहले सबकोई केशव-ए-अपड़ियो!’

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2025-11-16 09:06:38

ذاتی تعارف

मुंबई के एक डिजिटल संत हूँ — जो गेमिंग के साथ में पुरानी रहस्ती को समझता हूँ। मैंने 'फ्री स्पिन' को देवता के अनुग्रह के रूप में परिभाषित किया है: प्रत्येक 'रोटेशन' एक पुजा है, प्रत्येक 'जैक' मेरी संस्कृति का प्रतिबिम्ब है। मुझे विश्वास है — सभी खिलाड़ियों को समान संधि मिलनी। मेरा सपना? — एक ‘बर्नलेस (365)’, जहाँ हर पलकटक में, ‘अचलच्छ’ (अशुभ) के ‘चढ़दहर’ (आशा) की पहचड़ हो।